शनिवार, 11 जून 2011

उंगलियाँ थाम के चलना

उंगलियाँ थाम के चलना  मैं भटक जाऊंगा 
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो थक जाऊंगा |

तुम जो यादों की किताबों के वरक पलटोगे 
एक लम्हे के लिए मैं भी     झलक जाऊंगा

घर भी जाना है कि अब और पिलाओ न मुझे
मैं नशे में हूँ           कहीं और बहक  जाऊंगा |

गम -ज़दा  पलकों में ठहरा हुआ पानी हूँ मैं
मुझको छेड़ोगे तो छूते ही   छलक जाऊंगा |

मैं 'पवन' हूँ  मुझे चन्दन का बदन छूने दो
तेरी खुशबू को लिए     दूर तलक जाउँगा || 

                                      ............पवन श्रीवास्तव



बुधवार, 8 जून 2011

कल्पना अस्वीकार से जनमती है...........

कल्पना !
अस्वीकार से जनमती है .
अस्वीकार !
उर्जा के ऊफान से निकलता है .
उर्जा और प्रज्ञा के व्याघात है विचार .
विचार ! कल्पना नहीं हैं |
कल्पनाएँ ,आदमी का साथ छोड़ने लगें
तो, प्रलय है |
फिर महा-प्रलय की कल्पना !
फिर, नई सृष्टि की कल्पना !
कल्पना !
तेरे बाँयें अनंत अर्ध-विराम हैं .
तेरे दाँयें कोई पूर्ण-विराम नहीं !!

                                         ....... पवन श्रीवास्तव


शुक्रवार, 3 जून 2011

मुश्किलों को सादगी की आँख से देखो,सुनो

मुश्किलों को सादगी की आँख से देखो ,सुनो
ज़िंदगी को ज़िंदगी की आँख से  देखो , सुनो

कोहसारों  में  छुपी है   रौशनी  ही  रौशनी
पत्थरों  को जौहरी की आँख  से देखो,सुनो

आपको अपना कोई चेहरा नज़र आ जाएगा
आइने को मुफलिसी की आँख से देखो,सुनो

हर ग़ज़ल अपनी भजन जैसी लगेगी आपको
शायरी को  बंदगी की  आँख से  देखो , सुनो

बस्तियों में  घर ही घर होंगे  तुम्हारे वास्ते
ये सफ़र आवारगी की आँख से  देखो,सुनो
                                                        .......पवन श्रीवास्तव