पाँव उठते हैं कि गिरते हैं,ये चलना तो नहीं
चार, दीवार उठा लेना ही , बसना तो नहीं
उम्र भर भागते रहने से भला क्या हासिल
भागना ? भागना होता है , पहुंचना तो नहीं
ये जो झुकता है मेरा सिर ,तो सिर नहीं हूँ मैं
यूँ ,एह्तारामे-हकीक़त कोई झुकना तो नहीं
मैंने लम्हों से सुलह की है, जमाने से नहीं
मेरा छुपना ?मेरा बचना ? मेरा डरना तो नहीं
तुम जो कहते हो उसे गौर से सुनता है "पवन "
पर ,महज गौर से सुनना ही समझना तो नहीं.
........पवन श्रीवास्तव