रविवार, 9 अक्तूबर 2011

पाँव उठते हैं कि गिरते हैं ........

पाँव उठते हैं कि गिरते हैं,ये चलना तो नहीं 
चार,  दीवार उठा लेना ही ,  बसना तो नहीं 

उम्र भर भागते रहने से   भला क्या हासिल 
भागना ? भागना होता है , पहुंचना तो नहीं 

ये जो झुकता है मेरा सिर ,तो सिर नहीं हूँ मैं 
यूँ ,एह्तारामे-हकीक़त कोई झुकना तो नहीं 

मैंने लम्हों से सुलह  की है,     जमाने से नहीं  
मेरा छुपना ?मेरा बचना ? मेरा डरना तो नहीं  

तुम जो कहते हो उसे गौर से सुनता है "पवन "
पर ,महज गौर से सुनना ही समझना तो नहीं.
                                                                 ........पवन श्रीवास्तव 


मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

कल्पना

कल्पना !
अस्वीकार से जनमती है .
अस्वीकार !
ऊर्जा के ऊफान से निकलता है.
ऊर्जा और प्रज्ञा के व्याघात हैं विचार ..........
विचार !
कल्पना नहीं है .
कल्पनाएँ !
आदमी का साथ छोड़ने लगें
तो, प्रलय है.......
फिर महाप्रलय की कल्पना .
फिर नई सृष्टि की कल्पना.......
कल्पना !
तेरे बाँए अनंत अर्ध-विराम हैं.,,,,,,......
तेरे दाएँ कोई पूर्ण-विराम नहीं ...............

                                                     ......पवन श्रीवास्तव

सत्यम शिवम सुन्दरम

सत्य के ,
कटु,तिक्त और रस से रिक्त होने का बयान ?
किसी बाँझ की प्रसव-पीड़ा ,किसी क्लीव की काम-क्रीडा जैसा
अनूठा बयान है .
सरासर झूठा बयान है ....

ध्वनि-विस्तारक चोंगों से चीखतीं
हवाओं में गड्ड-मड्ड होतीं
कटु सच्चाइयाँ ?
झूठ की परछाइयाँ हैं ...
भ्रम-संध्याओं में छायाएं  !
अपनी काया से बड़ी हो गयीं हैं ....

कचकडे के क्लिपों से चपीं,
सूख-सूख कर ऐठ गयीं हैं
रस-श्रावी ग्रंथियां ...!.........इन्द्रियाँ...... ?
मुँह ढाँप कर सो गयीं हैं ..

सच और झूठ के इन कटु-मधु बयानों के संजाल से ..
तड़प भागे .आदमी के पीछे ....
हाथ धो कर पडी हैं ...........
आचार-संहिताओं   की    सशस्त्र सेनाएं .......!!!!!!!!!!!!!!
                                                       ........पवन श्रीवास्तव