उँगलियाँ थाम के चलना ,मैं भटक जाऊंगा
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो थक जाऊंगा
ग़मज़दा पलकों में ठहरा हुआ पानी हूँ मैं,
मुझको छेड़ोगे तो छूते ही छलक जाऊंगा .
घर भी जाना है कि अब और पिलाओ न मुझे
मैं नशे में हूँ कहीं और बहक जाऊंगा .
तुम जो यादों कि किताबों के वरक पलटोगे
एक लम्हे के लिए मैं भी झलक जाऊंगा.
मैं "पवन" हूँ मुझे चन्दन का बदन छूने दो
तेरी खुशबू को लिए दूर तलक जाऊंगा.
.......पवन श्रीवास्तव
गुरुवार, 12 अप्रैल 2012
मंगलवार, 10 अप्रैल 2012
मुश्किलों को सादगी की आँख से देखो ,सुनो
जिन्दगी को जिन्दगी की आँख से देखो ,सुनो.
कोहसारों में छुपी है रौशनी ही रौशनी
पत्थरों को जौहरी की आँख से देखो,सुनो.
आपको अपना कोई चेहरा नज़र आ जाएगा
आईने को मुफलिसी की आँख से देखो ,सुनो.
जिन्दगी यकलख्त पैराहन बदल कर आएगी
आंसुओं को गुद-गुदी की आँख से देखो ,सुनो.
हर ग़ज़ल अपनी भजन जैसी लगेगी आपको
शाइरी को बंदगी की आँख से देखो,सुनो.
बस्तिओं में घर ही घर होंगे तुम्हारे वास्ते
ये सफ़र आवारगी की आँख से देखो,सुनो.
.........पवन श्रीवास्तव.
जिन्दगी को जिन्दगी की आँख से देखो ,सुनो.
कोहसारों में छुपी है रौशनी ही रौशनी
पत्थरों को जौहरी की आँख से देखो,सुनो.
आपको अपना कोई चेहरा नज़र आ जाएगा
आईने को मुफलिसी की आँख से देखो ,सुनो.
जिन्दगी यकलख्त पैराहन बदल कर आएगी
आंसुओं को गुद-गुदी की आँख से देखो ,सुनो.
हर ग़ज़ल अपनी भजन जैसी लगेगी आपको
शाइरी को बंदगी की आँख से देखो,सुनो.
बस्तिओं में घर ही घर होंगे तुम्हारे वास्ते
ये सफ़र आवारगी की आँख से देखो,सुनो.
.........पवन श्रीवास्तव.
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