गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

ungliyan tham ke chalna.......

उँगलियाँ थाम के चलना ,मैं भटक जाऊंगा
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो थक जाऊंगा

ग़मज़दा पलकों में ठहरा हुआ पानी हूँ मैं,
मुझको छेड़ोगे तो छूते ही छलक जाऊंगा .

घर भी जाना है कि अब और पिलाओ न मुझे
मैं नशे में हूँ    कहीं और          बहक जाऊंगा .

तुम जो यादों कि किताबों के वरक पलटोगे
एक लम्हे के लिए मैं भी     झलक जाऊंगा.

मैं "पवन" हूँ मुझे चन्दन का बदन छूने दो
तेरी खुशबू को लिए दूर तलक जाऊंगा.
                                                        .......पवन श्रीवास्तव     

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह,
    घर भी जाना है कि अब और पिलाओ न मुझे
    मैं नशे में हूँ कहीं और बहक जाऊंगा

    लेकिन इससे पहले आपने ही कहा है:-

    बस्तिओं में घर ही घर होंगे तुम्हारे वास्ते
    ये सफ़र आवारगी की आँख से देखो,सुनो.
    फिर कौन सा घर.

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