सोमवार, 11 अप्रैल 2011

आहटें फिर से आने लगी हैं

आहटें फिर से आने लगी हैं 
कोशिशें सुगबुगाने लगी हैं  

कोई आवाज देने लगा है
चुप्पियाँ गुनगुनाने लगी हैं

कोई हलचल है सागर के तल में
कश्तियाँ डगमगाने लगी हैं

आपको छू के गुजरी हवाएं
अब मुझे गुदगुदाने लगी हैं

देखना कोई आंधी उठेगी
चीटियाँ घर बनाने लगी हैं

मेरी आवारगी के तजुर्बे
पीढियां आजमाने लगी हैं

-----पवन श्रीवास्तव 

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