शुक्रवार, 3 जून 2011

मुश्किलों को सादगी की आँख से देखो,सुनो

मुश्किलों को सादगी की आँख से देखो ,सुनो
ज़िंदगी को ज़िंदगी की आँख से  देखो , सुनो

कोहसारों  में  छुपी है   रौशनी  ही  रौशनी
पत्थरों  को जौहरी की आँख  से देखो,सुनो

आपको अपना कोई चेहरा नज़र आ जाएगा
आइने को मुफलिसी की आँख से देखो,सुनो

हर ग़ज़ल अपनी भजन जैसी लगेगी आपको
शायरी को  बंदगी की  आँख से  देखो , सुनो

बस्तियों में  घर ही घर होंगे  तुम्हारे वास्ते
ये सफ़र आवारगी की आँख से  देखो,सुनो
                                                        .......पवन श्रीवास्तव
        

 

7 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी ग़ज़ल है. 'की आंख से देखो-सुनो' रदीफ़ का बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल किया है आपने.
    ---देवेंद्र गौतम

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  2. "बसा के शह्र बयाबां को बढ़ गया 'कुंदन' /
    मैं सोचता हूँ वो खानाखराब कैसा था /"

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  3. शाम के इस धुंधलके के मिज़राब पर ....
    ज़िंदगी अपनी बाँहें समेटे हुए /
    सुस्त क़दमों पे चलती हुई /
    शाम के इस धुंधलके के मिज़राब पर/
    कितने बरसों की चोटों से पुख्ता हुई /
    इक उदासी की धुन गुनगुनाती हुई /
    मेरे दिल में उतरती चली जा रही है /

    दिल की उरियां-सी शाख़ों पे /
    लम्हों के कुछ वो तबस्सुम बचे थे /
    मैं तो दिन भर उन्हीं को था चुनता रहा /
    बस इसी आस में /
    शाम को क़ह्क़हों में वो /
    तब्दील हों /
    एक महफ़िल सजे /
    शादमां बज़्म हो /
    नीम रोशन-से हल्क़े में /
    बैठे हों हम/
    चुप के उस मोड़ पर /
    जिसमें अलफ़ाज़ की /
    कुछ ज़रुरत न हो /
    और खिड़की के बाहर का /
    वो गुलमोहर /
    इस हमारी ख़मोशी का /
    शाहिद बने /
    ख़ूबसूरत-चुप जो के भारी हो /
    कितने-ही अलफ़ाज़ पे /
    मैंने सोचा ही था /
    मैंने सोचा ही था /

    पर मेरी शाम में /
    ज़िंदगी की वो धुन /
    कैसे शामिल हुई /
    शाम के इस धुंधलके के /
    मिज़राब पर /
    कितने बरसों की चोटों से /
    पुख्ता हुई/
    इक उदासी की धुन /
    **********************

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  4. गली-गली के हर इक दर पे वो पुकार गया
    सुकूँ की चाह में आया था ,बेक़रार गया

    तुम्हारी आँख से जब अपनी ज़ात को देखा
    उठा के सर को जो आया था ,शर्मसार गया

    फ़रेब था मेरी हस्ती में सरापा पेबस्त
    वो दीदावर मेरी हस्ती के आर-पार गया

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  5. bahuroopia ji
    wese apka nam ishwar ka paryayawachi hai magar n jane kyon log ise negative arth me pryog kate hain.
    is ghazal ke akhri 2 sheron ke liye apka nam jnanpeeth ke liye bhej deta magar afsos is mamale me bhaut chhota vyakti hoon. maza aa gaya ....
    kya osho rajneesh ke ap anujnayee hai?
    divya ranjan

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  6. धन्यवाद् भाई दिव्यारंजन ! यार जतनी बड़ी बात न कहो

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  7. कोहसारों में छुपी है रौशनी ही रौशनी
    पत्थरों को जौहरी की आँख से देखो,सुनो

    ववग पवन जी क्या खूब कहा , सुन्दर रचना

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