सृजन-गीत-२
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यह नहीं समझो कि यह अवसान साधारण मरण है
यह प्रसव-पीड़ा-तरंगों का घनीभूतीकरण है
यह किसी कल्याण-कारी आत्म-मृत्यु का वरण है
यह सृजन की प्रक्रिया प्रारंभ का पहला चरण है !!
एक क्रम है, जो निरंतर चल रहा है,थम रहा है
एक भ्रम है जो निरंतर मिट रहा है ,बन रहा है
जो कभी सीपी कभी स्वाती के तन में पल रहा है
अंक में पीड़ा सहेजे रोज मोती जन रहा है
एक क्रम है, जो निरंतर चल रहा है,थम रहा है
एक भ्रम है जो निरंतर मिट रहा है ,बन रहा है
जो कभी सीपी कभी स्वाती के तन में पल रहा है
अंक में पीड़ा सहेजे रोज मोती जन रहा है
यह नहीं समझो कि यह अवसान अब अंतिम विलय है
अमर-सुर-संहार तारों पर खिची यह एक लय है
अनाहत आकाश पर संघात करता एक समय है
तमाछादित-सेज पर यह काल का अद्भुत प्रणय है
अब इसे स्वीकार करिए , श्रीष्टि का वरदान है ये,
प्रलय-झंझावत में भी एक लंबा ध्यान है ये
और रचेता के कुंवारे लक्ष्य का संधान है ये
फिर किसी के आगमन के पूर्व का प्रस्थान है ये !
अब इसे स्वीकार करिए..!...अब इसे स्वीकार करिए .... !!
.......पवन श्रीवास्तव
दोनों ही नज्में लाजवाब...गहरे समंदर से समेट कर लाये मोतियों की तरह...अनमोल...बधाई!
जवाब देंहटाएं---देवेंद्र गौतम
यह सृजन की प्रक्रिया प्रारंभ का पहला चरण है
जवाब देंहटाएंहकीक़त के लिए
हकीक़त की तरह
बहुत ही अच्छी और सार्थक रचना ...
अभिवादन .