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ताड़ी कहे ताड़ से ,कि,मांग करो सरकार से
हमरो रेट बढे के चाहीं,फैसन के रफ़्तार से
नाम बा हमरो नीसा में,हक बा हमरो हिसा में
सबसे ऊपर हम रहिला खिलल रहिला झिसा में
हम रहीं लबना -लबनी में, दारू बैठे सीसा में
लुक-छीप के मत पीअ मत पीअ लोटा में
फ्री सेल में न पिअब ता अब का पीअब कोटा में
(यह रचना तब जन्मी थी जब लालू जी ने ताड़ी पर से टैक्स हटा लिया था ...रचनाकार अज्ञात
ताड़ी कहे ताड़ से ,कि,मांग करो सरकार से
हमरो रेट बढे के चाहीं,फैसन के रफ़्तार से
नाम बा हमरो नीसा में,हक बा हमरो हिसा में
सबसे ऊपर हम रहिला खिलल रहिला झिसा में
हम रहीं लबना -लबनी में, दारू बैठे सीसा में
लुक-छीप के मत पीअ मत पीअ लोटा में
फ्री सेल में न पिअब ता अब का पीअब कोटा में
(यह रचना तब जन्मी थी जब लालू जी ने ताड़ी पर से टैक्स हटा लिया था ...रचनाकार अज्ञात
सुंदर अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंभईया प्रणाम.
जवाब देंहटाएंयह आम आदमी के शहरीकरण पर व्यंग है.
ताड़ी महाराज की इच्छा बगीचे से निकलकर बार में बैठने की है. ठीक से सोच समझ लें. वहां देहात वाला खुलापन नहीं मिलेगा. अभी पानी मिलाया जाता है.तब अल्कोहल मिलाया जायेगा.
धन्यबाद.- राजीव रंजन चौधरी (दिल्ली) आरा बिहार