पाँव उठते हैं कि गिरते हैं,ये चलना तो नहीं
चार, दीवार उठा लेना ही , बसना तो नहीं
उम्र भर भागते रहने से भला क्या हासिल
भागना ? भागना होता है , पहुंचना तो नहीं
ये जो झुकता है मेरा सिर ,तो सिर नहीं हूँ मैं
यूँ ,एह्तारामे-हकीक़त कोई झुकना तो नहीं
मैंने लम्हों से सुलह की है, जमाने से नहीं
मेरा छुपना ?मेरा बचना ? मेरा डरना तो नहीं
तुम जो कहते हो उसे गौर से सुनता है "पवन "
पर ,महज गौर से सुनना ही समझना तो नहीं.
........पवन श्रीवास्तव
सोना जागना रैन बसेरा, ये शहर अपना तो नहीं.
जवाब देंहटाएंमौसम की पहली बारिश में मिट्टी की सोंधी खुशबु,
नालों में दुबे शहरों से, ये पीछे रहना तो नहीं.